सीख-सा गया हूँ !
तुमसे ज्यादा खुश नहीं हूँ ,
बस तुम्हारी खुशी में खुश रह लेता हूँ !
नहीं अफ़सोस मुझे मेरी हार का ,
उन्हीं हारों से थोड़ा जीतना सीख-सा गया हूँ !!
अब बचपन की तरह गिरने पर खड़ा कौन करता है ?
अक्सर गिर कर खुद के पैरों पर खड़ा हो जाता हूँ !
जीया ही हूँ दूसरों के लिए हमेशा से ,
थोड़ा बहुत खुद के लिए भी जीना सीख-सा गया हूँ !!
प्यार होने सा लगा तो सोचा ,
इज़हार भी कर ही लेता हूँ !
दर्द तो अब भी बहुत है ,
शायद अब कुछ छुपाना सीख-सा गया हूँ !!
धोखे तो बहुत खाये,
पर अब खुद को समझा लेता हूँ !
मुश्किलें किसके आड़े नहीं आयी ,
मैं उनका सामना करना सीख-सा गया हूँ !!
जब चाहा तभी मिला नहीं ,
अब इंतज़ार भी कर ही लेता हूँ !
वक़्त को तो रोक नहीं पाया ,
तभी उसको अपना बनाना सीख-सा गया हूँ !!
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