तुम !

मिलना भी नहीं चाहता था जब किसी से,
तब एक लम्बे दौर के बाद दिखती हो तुम !
ना मालूम था इस शख्स को की,
सबसे अलग होउंगी तुम !!

क्या जादू था वो तेरी हसरतों का,
अब भी याद आती हो तुम !
कभी मुलाकात हो सके हमारी ,
शायद ये चाहती नहीं तुम !!

तुम्हे भुलने का जितना भी करूँ ,
एक अरसे के बाद अक्सर दिख जाती हो तुम !
हर बार मैं ही गलत था ,
जो इतने वक़्त से नफरत की आग लगाए बैठी हो तुम !!

वक़्त के साथ वो हसीन यादें ताजा हो रही है ,
ये भी जान चुकी होउंगी तुम !
और अपनी कहानी यूँ ही आगे बढ़े ,
ये चाहती हो तुम !!

जुटा नहीं पाया हिम्मत तुमसे कहने की,
मेरी पहली और आखिरी ख्वाहिश हो तुम !
पर शायद मेरे बिन कुछ कहे,
खुद ब खुद समझ सकी हो तुम !!


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